Masroof Fursaten (مصروف فرصتیں) is the Title for my Literary Work.
It consists of Love & Revolution in the form of my Ghazals, Nazms, Hindi Poems, Songs and so on.
इक इश्क़ था हमारा, इक याद थी तुम्हारी...
मसरूफ़ थीं बहुत वो, जिन फ़ुरसतोंं से गुज़रे...
Tuesday, November 12, 2019
Friday, September 27, 2019
तुम बिन
~ न जाने क्यों लगा अच्छा - शेर ~
तुम बिन भी बादल घिरते हैं
और बुरा क्या होगा इससे
तुम बिन भी सावन आता है,
और बुरा क्या होगा इससे
कोसता हूँ बारिश को जितना,
और निगोड़ी होती है
आग लगाती है ये बारिश,
और बुरा क्या होगा इससे
Monday, September 16, 2019
न जाने क्यों लगा अच्छा
~ न जाने क्यों लगा अच्छा - शेर ~
हाँ, वो ही दर-ब-दर, कूँचा-बसर,
दुनिया से बे-परवाह ।
वो फ़ाक़ा-मस्त, मस्ताना,
न जाने क्यों लगा अच्छा ।।
मुश्किल अल्फ़ाज़:- दर-ब-दर = बे-घर-बार, बे-आसरा, Homeless; कूँचा-बसर = गलियों, सड़कों पर घूमने वाला, Street-wanderer; फ़ाक़ा-मस्त = भूखा रहकर भी ख़ुश रहने वाला, Happy without Food.
Sunday, September 08, 2019
Saturday, September 07, 2019
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