Masroof Fursaten
Masroof Fursaten (مصروف فرصتیں) is the Title for my Literary Work.
It consists of Love & Revolution in the form of my Ghazals, Nazms, Hindi Poems, Songs and so on.
इक इश्क़ था हमारा, इक याद थी तुम्हारी...
मसरूफ़ थीं बहुत वो, जिन फ़ुरसतोंं से गुज़रे...
Friday, May 01, 2020
Sunday, January 12, 2020
New Year Special Compositions - 2020
Compositions Published in
~ HUMOUR TIMES jest for fun ~
~ HUMOUR TIMES jest for fun ~
Many Thanks to Respected Sir Brij Khandelwal
तो नया साल मुबारक
~ क्या किया जाए ? - ग़ज़ल ~
~ क्या किया जाए ? - ग़ज़ल ~
मैं भला हूँ, तू भला है, ये भला है, वो भला है।
क्या किया जाए ? भले हैं सब, ज़माना ही बुरा है।।
Last ⇓
~ ढीला इस्क्रू 💞 - नज़्म ~
( आपके 'प्रिय' - और - आपकी 'प्रिय' - के लिए 👫 😇)
Tuesday, November 12, 2019
Friday, September 27, 2019
तुम बिन
~ न जाने क्यों लगा अच्छा - शेर ~
तुम बिन भी बादल घिरते हैं
और बुरा क्या होगा इससे
तुम बिन भी सावन आता है,
और बुरा क्या होगा इससे
कोसता हूँ बारिश को जितना,
और निगोड़ी होती है
आग लगाती है ये बारिश,
और बुरा क्या होगा इससे
Monday, September 16, 2019
न जाने क्यों लगा अच्छा
~ न जाने क्यों लगा अच्छा - शेर ~
हाँ, वो ही दर-ब-दर, कूँचा-बसर,
दुनिया से बे-परवाह ।
वो फ़ाक़ा-मस्त, मस्ताना,
न जाने क्यों लगा अच्छा ।।
मुश्किल अल्फ़ाज़:- दर-ब-दर = बे-घर-बार, बे-आसरा, Homeless; कूँचा-बसर = गलियों, सड़कों पर घूमने वाला, Street-wanderer; फ़ाक़ा-मस्त = भूखा रहकर भी ख़ुश रहने वाला, Happy without Food.
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